टीचिंग इंटर्नशिप: खुद को परखने का एक मौका
टीचिंग के प्रोफेशन को प्रारम्भ से ही सम्मानजनक पेशे के रूप में देखा जाता है। आज शिक्षकों का दायित्व कई लिहाज से पहले से अलग नजर आता है। बदलते सामाजिक, आर्थिक समीकरणों और व्यापक होती सोच के बीच शिक्षकों की भूमिका भी व्यापक हुई है। अगर आप टीचर बनना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको यह निर्णय करना होगा कि आपको किस लैवल पर टीचिंग करनी है। डिग्री कॉलेज लैवल या स्कूल लैवल। अगर आपके पास टीचर्स ट्रेनिंग सर्टिफिकेट है तो आप मिडल स्कूलों में पढ़ा सकते हैं। बीएड होने पर आपको स्कूलों में पढ़ाने का मौका आसानी से मिल जाएगा, लेकिन इन सबसे पहले सबसे महत्वपूर्ण है इसमें इंटर्नशिप या ट्रेनिंग करना।
योग्यता
इंटर्नशिप करने के लिए जरूरी है कि आप किसी मान्यताप्राप्त संस्थान से टीचिंग का कोर्स कर रहे हों। कुछ संस्थानों में मेरिट के आधार पर तो कई संस्थानों में चयन परीक्षा के आधार पर विद्यार्थियों को चुना जाता है।
इंटर्नशिप करने के लिए जरूरी है कि आप किसी मान्यताप्राप्त संस्थान से टीचिंग का कोर्स कर रहे हों। कुछ संस्थानों में मेरिट के आधार पर तो कई संस्थानों में चयन परीक्षा के आधार पर विद्यार्थियों को चुना जाता है।
क्या करवाया जाता है इंटर्नशिप के दौरान
इंटर्नशिप के दौरान विद्यार्थियों को उनके लैवल के हिसाब से कार्य करवाए जाते हैं। मसलन कोई बीएड का छात्र है तो उसे सीनियर कक्षा के छात्रों को कैसे संभाला जाए और क्या करवाया जाए, बताया जाता है। वहीं अगर कोई डाइट का कोर्स कर रहा छात्र ट्रेनिंग के लिए आता है तो उसे जूनियर लेवल के बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग दी जाती है। टीचिंग की इंटर्नशिप सीनियर और जूनियर लेवल पर अलग-अलग होती है-
इंटर्नशिप के दौरान विद्यार्थियों को उनके लैवल के हिसाब से कार्य करवाए जाते हैं। मसलन कोई बीएड का छात्र है तो उसे सीनियर कक्षा के छात्रों को कैसे संभाला जाए और क्या करवाया जाए, बताया जाता है। वहीं अगर कोई डाइट का कोर्स कर रहा छात्र ट्रेनिंग के लिए आता है तो उसे जूनियर लेवल के बच्चों को पढ़ाने की ट्रेनिंग दी जाती है। टीचिंग की इंटर्नशिप सीनियर और जूनियर लेवल पर अलग-अलग होती है-
बीएड की इंटर्नशिप (सीनियर लेवल)इसके अंतर्गत विद्यार्थियों को साल में दो बार इंटर्नशिप के लिए जाना होता है। विद्यार्थियों को उनके बीएड के विषय के अनुसार पढ़ाने के लिए कहा जाता है। यदि विद्यार्थी ने टीजीटी लेवल पर बीएड की हुई है तो उसे 10वीं तक की कक्षा को पढ़ाने के लिए दिया जाता है। पीजीटी वालों को ही 12वीं तक की कक्षाएं दी जाती हैं। इसके बाद विद्यार्थियों को रोजाना एक लेसन प्लान तैयार करना होता है, जिसका लिखित रिकॉर्ड भी रखा जाता है। इससे इन्स्ट्रक्टर को पता चल जाता है कि कक्षा में क्या करवाया जा रहा है। ये लेसन प्लान प्रोजेक्ट का हिस्सा होते हैं, जिसके अंक जोड़े जाते हैं। इसके साथ ही विद्यार्थियों को उसी अवधि में कक्षा के सभी बच्चों में से किसी एक अलग बच्चे पर केस स्टडी भी करनी होती है। उस केस स्टडी में आपको बताना होता है कि वह क्यों अलग है, उसके पीछे कारण क्या हैं, वह कब से ऐसा है और फिर उसके माता-पिता से मिल कर उसका समाधान करना होता है। यह केस स्टडी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा होती है। इसके अलावा तीसरा काम होता है टीबीआर यानी टेक्स बुक रिव्यू का। इसमें आपको किसी भी एक बुक की समीक्षा करनी होती है और उसका भी लिखित रूप में रिकॉर्ड रखना पडम्ता है। ये तीनों चीजें इंटर्नशिप के दौरान आवश्यक होती हैं और अवश्य ही करवाई जाती हैं।
डाइट की इंटर्नशिप (जूनियर लेवल)बीएड की तरह ही इसकी इंटर्नशिप में भी लेसन प्लान तैयार करना होता है, लेकिन इसके साथ ही इसमें स्टडी मेटेरियल या फ्लैश कार्ड का इस्तेमाल करना भी सिखाया जाता है। फ्लैश कार्ड वह होता है, जिसमें विभिन्न तरह के चित्र बनाए जाते हैं, जिसकी मदद से बच्चों को पाठ समझने में आसानी होती है।
फायदे
प्राइवेट स्कूलों में तो स्मार्ट क्लास के माध्यम से पढ़ाना सिखाया जाता है। और तो और, अगर आप वहां अच्छा काम करते हैं तो वे आपको अपने यहां काम करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। सरकारी स्कूलों में आपको ट्रेंनिग तो मिल जाती है, लेकिन जॉब का अवसर नहीं मिलता, क्योंकि सरकारी स्कूल में आवेदन कर नौकरी पाने की प्रक्रिया कुछ समय लेती है।
प्राइवेट स्कूलों में तो स्मार्ट क्लास के माध्यम से पढ़ाना सिखाया जाता है। और तो और, अगर आप वहां अच्छा काम करते हैं तो वे आपको अपने यहां काम करने का अवसर भी प्रदान करते हैं। सरकारी स्कूलों में आपको ट्रेंनिग तो मिल जाती है, लेकिन जॉब का अवसर नहीं मिलता, क्योंकि सरकारी स्कूल में आवेदन कर नौकरी पाने की प्रक्रिया कुछ समय लेती है।
कब करें आवेदन
प्रत्येक संस्थान की आवेदन प्रक्रिया अलग-अलग है। साथ ही कोर्स का आवेदन करने का समय भी भिन्न होता है।
प्रत्येक संस्थान की आवेदन प्रक्रिया अलग-अलग है। साथ ही कोर्स का आवेदन करने का समय भी भिन्न होता है।
बीएड की प्रक्रिया: इसमें साल में दो बार ट्रेनिंग करनी अनिवार्य होती है। पहली, आवेदन कोर्स में प्रवेश के दो महीने बाद और दूसरी, छह महीने बाद। ये आपके पाठ्यक्रम का हिस्सा होती है।
डाइट की प्रक्रिया: इसकी प्रक्रिया के अंतर्गत विद्यार्थियों को दोनों साल इंटर्नशिप करना जरूरी होता है। दोनों साल के मिड यानी मध्य में इसकी इंटर्नशिप करनी पड़ती है।
कहां से करें इंटर्नशिप
प्राइवेट स्कूल हो या सरकारी, टीचिंग की इंटर्नशिप आप कहीं भी, किसी भी स्कूल से कर सकते है। लेकिन इसकी इंटर्नशिप के लिए कॉलेज या संस्थान आपको स्वयं ही विभिन्न स्कूलों में भेजती है।
प्राइवेट स्कूल हो या सरकारी, टीचिंग की इंटर्नशिप आप कहीं भी, किसी भी स्कूल से कर सकते है। लेकिन इसकी इंटर्नशिप के लिए कॉलेज या संस्थान आपको स्वयं ही विभिन्न स्कूलों में भेजती है।
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